हाइकु संग्रह ' गूँज '

.


१.

चुप ज़िंदगी 

बोलते रहे साये

जीवन बीता ।

Photo by Lin Mei on Unsplash

२.

संकल्प दृड़

भीतर प्रकाश है

किवाड़ खोलो ।


३.

किवाड़ बंद

न्याय अदालत में

खिड़की खोलो ।


४.

उठो बचाओ

देश लुट रहा

घोटाले बोले ।


५.

हमारे हाथ 

सिर खुजला रहे

पीड़ित जिस्म ।


६.

हमारा नारा 

हम सब भाई है

वादी सहमी ।


७.

सब हीरो हैं

सब अभिनेत्रियां

दर्शक दूँढो ।


८.

सिमट गया

आवरण धूप में

नग्न पड़ा हूँ । 


९.

तेरी प्रतीक्षा

मेरे संग पहुँची 

उस लोक भी ।


१०.

रुके पानी में

कमल मुरझाया

बदलो इसे ।


११.

स्वयं अपनी

कब्र खोदता है

इंसान अब ।


१२.

बहरा पिता

गूंगी माँ ढूंढ रही

श्रवण-पुत्र । 


१३.

वर्षा खामोश

मौसम का चुनाव

अंकुर फूटा । 


१४.

बूंदों से होती 

उमस धरा पर

बरसो मेघ ।


१५.

कैसी ज़िंदगी

खो जाती है अक्सर

चौराहों पर ।


१६.

भवन बना

रेत पत्थर जुड़े 

घर बिखरा ।


१७.

लम्बी हैं रातें

उलझते सपने

छोटे हैं दिन ।


१८.

काले अक्षर

अर्थ समझाते हैं 

उज्ज्वलता का ।


१९.

सत्य अकेला

झूठ भीड़ में खड़ा

न्याय उदास ।


२०.

ठंडी बयार

मारी मारी फिरती

रीत जग की ।


२१.

छात्र बेचैन

अध्यापक बेबस

शिक्षा प्रणाली ।


२२.

तेरे आने से

सब बदल गया

यह नियति ।


२३.

रहे दौड़ते

माया माया करते

घुटने टूटे ।


२४.

धनी बच्चों को

माँ भीख मांग रही

हम आज़ाद ।


२५.

मुड़ के देखो

मेरा देश महान

नेता जी बोले ।


२६.

हम एक हैं

प्रगति ज़ोरों पर

अन्याय बोला ।


२७.

मैं और तुम

चलेंगे संग संग

आज से दोस्ती । 


२८.

शांत अंबर 

है अकेला विहंग

उड़ान संग ।


२९.

चित्रकार ने

प्रदर्शनी लगाई

रंग उदास । 


३०.

पगडंडी पे

अब वाहन दौड़ 

घुटती होड़ ।


३१.

लालची भूख

सब निगल रही 

मानव भूखा ।


३२.

तारे गिनना

आसान काम नहीं

आकाश भी है ।


३३.

किसकी आस

शरणार्थी सत्य से 

वीरता बोली ।


३४.

आदर्श भिड़े

प्रत्येक व्यक्ति संस्था

मूल्य उदास ।


३५.

शीशा अपनी

छिपाता काली पीठ

आत्मा बोली ।


३६.

मंज़िल दूर

रास्ता अपरिचित

पाँव अपने । 


३७.

मानव नैया

है जीवन नदिया

मन रफ़्तार ।


३८.

'मैं' और तुम

सर्वत्र साम्राज्य 

हम कहाँ हैं !


३९.

रिसते रिश्ते

भिगोये आँचल को 

निचोड़े प्रीत ।


४०. 

वक़्त घूमता

जीवन सरकता

पड़ाव अंत ।


४१.

परीक्षा घडी

सफलता सूचक

श्रम आधार ।


४२.

न्याय जो बिके

अन्याय का वर्चस्व

हवा दूषित ।


४३.

निगल रही 

सुरसा भविष्य को

बेरोज़गारी ।


४४.

पीड़ा दायक 

वैचारिक भिन्नता 

चुनौती भी है ।


४५.

रिश्तों में पड़ी 

उफ़! इतनी गांठें

माला क्या बने!


४६.

पलट देता 

भावना का स्पर्श है

जड़ - चेतन । 


४७.

भ्रमित करे 

सुनहरी चमक

मिले बेचैनी ।


४८.

भाव - भंडार

जीवन की धुरी पे

चक्कर काटे ।


४९.

स्वार्थ की रेत 

भावनाओं की नींव

सरका देती ।


५०.

छोड़ गई है

आदर्शों की राख को

ईर्ष्या की भट्टी ।


५१.

प्रकाश पथ

तम चीर के मिले

प्रेम पाथेय ।


५२.

खींचता सदा

पाताल की ओर है 

पंक का दल ।


५३.

तम का स्रोत्र

प्रकाश का आभाव

दृष्टि भेद है ।


५४.

रिश्तों की अर्थी

कंधे ढोते ढोते है

खाक छानते ।


५५.

वासना मात्र

प्रेम का प्रकरण

दिव्यता घुटे।


५६.

मुझे व तुम्हें 

आत्मा कुछ कहती 

दोनों न सुने।


५७.

दृष्टिकोण का 

बीज वृक्ष बनेगा

चखेंगे फल ।


५८.

चतुर कौवा

श्राद्ध-पक्ष बनाये

प्रति-पक्ष को ।


५९.

मनोबल का

श्री गणेश करती 

लक्ष्मी आज है ।


६०.

खारे जल से

कुंद पड़ न जाए

विवेक कहीं ।


६१.

शूरवीर ने 

बीने वन से शूल

कुटिल बसे ।


६२.

खुला रहता

फिर भी ढूंढ़ते है

शांति द्वार ।


६३.

मन में ज्वाला

खारे जल की राशि

नाम सागर ।


६४.

सुनते सभी

दहाड़ समय की 

चेतना कोई ।


६५.

वृक्ष बनेगा

रोपके युक्त बीज

हो मिट्टी नम !


६६.

प्यास बढ़ाती

मृग मरीचिका है

बुझाती कहाँ !


६७.

प्रशस्ति पथ प्रशस्ति 

बता रही है आत्मा

ध्यान लगाए ।


६८.

शब्द शक्ति है

चेतना का ईंधन 

व्यर्थ न जाये ।


६९.

युवा - बसंत

शिव स्वरूप सम

ध्यान चाहता ।


७०.

देश किसी की

धरोहर नहीं है

प्राण है यह ।


७१.

मूल्य जो गिरे

आत्मा मिट जायेगी

जीना दुष्वार । 


७२.

लक्ष्य का मोल

जीवन समान हो 

तौल पूरा है ।


७३.

अस्वस्थ मन

भटकता ही रहे

इलाज हेतु ।


७४.

झुलस रहा

भौतिक ताप से है 

सुसंरचना । 


७५.

कोढ बनी है

आहत भावनाएँ 

दूषित हवा ।


७६.

घने तम से

चमक उठती है

जीवन की लौ ।


७७.

मन का पात्र

संवेदना की मौजे

स्रोत्र फूटता ।


७८.

दीवारें रोके

सहजता पानी की

कुवास फैली ।


७९.

बेखबर है

देश भेष जाति से

राजनीतियाँ ।


८०.

सदा बहार

महक ही महक

आप्त वचन ।


८१.

बाँटेगे कैसे

धर्म की जायदाद

गूँज है यह


८२. 

तिजोरी भरी

श्रमिक ने श्रम से 

मन है खाली ।


८३.

मेरी वादी को

सेतु बना दिया क्यों

जाना कहाँ है !


८४.

आहात हुआ

संवेदना वार से

जाग जो गया ।


८५. 

भेदी है मन

कैसे तुम्हें सौंप दूँ

रोकूँ भी कैसे ।


८६.

बीते बरस

आस में अटके हैं 

बढ़ाओ हाथ ।


८७.

दीप जलाती

आहट जो सुनती

मिटता तम ।


८८. 

हार व जीत

बदले करवट

नींद बेचैन ।


८९. 

पानी व बर्फ

दोनों भाप से बने

किसे क्या मिले । 


९०. 

पीड़ा भी बिकी

अंक बोली दे गए

कुछ न बचा ।


९१.

पुकार रही

भगीरथ को आज

दूषित गंगा ।

 

९२.

वन जलाये

भीतरी अलाव ने

सुमन खिले ।

 

९३.

जन्म व मृत्यु

नदिया के दो तीर

जीवन नीर ।

 

९४.

अंधी ममता

ठोकरे खा खा कर

बहरी हुई ।

 

९५.

स्वार्थ के खूँटे पर

फड़फड़ता

विज्ञापन क्यों ।

 

९६.

तलाश रहा

सशक्त स्वच्छ मन

नव निर्माण ।

 

९७.

माँ उपहार

ममता अलंकार

गढ़े संसार ।

 

९८.

आज है नीव

कल वैसा भवन

करें चयन ।


९९.

चेतना साक्षी

दृश्य और दृष्टा की

हाय सोई क्यों ।


१००.

वेदना पूछे

भाई आहात मन

' मैं ' का क्या दाम !

 

१०१.

निमित बने

अखंड ज्योति दिखे

चक्षु तो खुले ।

 

१०२.

प्रभु का द्वार

जीवन अनुसार

देता पुकार

 

१०३.

भीतर चले

दृष्टिकोण बदले

स्वयं से मिले

 

१०४.

पीड़ा धो देती

चिपके कच्चे रंग

रिश्ते निखरे ।

 

१०५.

भीतर प्रभु

अवसर ताक में

देता साथ ' मैं '।

 

१०६.

शीत के डंक

पतझड़ पश्चात

ग्रीष्म में ताप ।

 

१०७.

माँ का आँचल

दलदल में फंसा

बिगड़ा बच्चा ।


१०८.

बिके विचार

सत्ता करे व्यापर

जन बीमार ।


१०९.

चेतन कार्य

जो महादेव करे

नाग लिपटे ।

 

११०.

सप्त रंगों का

प्रकाश है जीवन

छूटे न कोई ।

 

१११.

बुद्धि कमाल

धर्मों का बुने जाल

श्रद्धा बेहाल ।

 

११२.

सीख कर ही

सिखा सकते हम

आड़े है अहम् ।

 

११३.

आज है बीज

कल है उपवन

करे चयन ।

 

११४.

अंक एक का

भाग व गुणा सम

कैसे बाँटेंगे ।

 

११५.

क्या लाया संग

बाँटू कौन सा रंग

धैर्य-साहस ।

 

११६.

विष पीकर

महादेव जो बने

नाग लिपटे ।


११७.

मुट्ठी बंद की

अंगारों पर चले 

पाँव ही जले ।


११८.

लिपटे नाग

शीतल चन्दन से

कैसे प्रकृति ।

 

११९.

आग लगाए

मंदिर का दीपक

तापे मूर्ति भी ।

 

१२०.

गंगा नहाए

नीर बहा के आए

बीज न फूटा ।

 

१२१.

धृत पीकर

अखाड़े में हैं दल

ले जन धन ।

 

१२२.

एक मुस्कान

ममता चाहे दान

भली संतान ।

 

१२३.

प्यास न भुझे

सागर के जल से

कुआँ ही खोदें ।

 

१२४.

जीवन दाता

पत्थर बन गया

मोल जो माँगा ।


१२५.

तेरी मुस्कान

याद दिलाती पीड़ा

कब जानोगे ।


१२६.

जय जवान

जय किसान नारा

हो अलविदा ।

 

१२७.

खोज के लाओ

राष्ट्र प्रेम जगाओ

सत्ता आदेश ।

 

१२८.

जड़ उखाड़ो

शाखाएं पत्ते काटो

पुष्प चाहिए ।

 

१२९.

भ्रष्टाचार ने

आतंक मचाया है

दूँढ़ो कहाँ है ।

 

१३०.

तैरे बच्चे

अंडे बत्तख के थे

मुर्गी विस्मित ।

 

१३१.

श्रम से फल

माँ को समझाए

सपूत आज ।

 

१३२.   

जीवन-रथ

चला के हाँप रहे

बेसुध घोड़े ।

 

१३३.

नारी शक्ति का

प्रचार प्रसार है

बिन ममता ।


१३४.

प्रतिष्ठा हेतु

सरकार की दुकान

सदा खुली है ।

 

१३५.

सुई जोड़ती

तलवार तोड़ती

हाथ ही साथ ।

 

१३६.

संतान आए

शव प्रतीक्षा करें

संस्कार कैसे!

 

१३७.

मोल चुकाओ

पूत ऋण से तुम

माँ गुमसुम ।


१३८.

क्या फल फले

जड़ से वृक्ष कटे

राह ही रुके ।

 

१३९.

धर्म ही धरा

आत्मा की जड़ें फैले

ग्रंथियाँ खुले ।

 

१४०.

कल झूलेंगे

सपनों का हिंडोला

कल न आया ।

 

१४१.

धैर्य कमाई

पर्वत धराशाही

संकल्प राही ।

 

१४२.

नमी से फूटे

दलदल में सड़े

भावों के बीज ।

 

१४३.

नीर जो बहे

भाव अतिरेक से

मर्म खोजते ।

 

१४४.

तम रात का

उजाला सूर्य का

ज्योति अपनी ।

 

१४५.

तम का संग

सूर्य उदय से भांग

 जानेंगे रंग ।

 

१४६.

भीड़ में खोए

माँ बाप बच्चे रिश्ते

तनहाई ढोये ।

 

१४७.

प्रेम जो बुने

संवेदना के तर

तो परिवार ।

 

१४८.

प्रकृति न्याय

सब से है ऊपर

क्यों बेखबर ।

 

१४९.

अतीत जड़

वर्तमान चेतन

कर्म वेतन ।

 

१५०.

भाग्य तो जड़

पुरुषार्थ चेतन

कर्म वेतन ।

 

१५१.

नीर जो बहे

भावों के शिकर से

चेतना घुले ।

 

१५२.

कोहरा छाये

श्रद्धा-विश्वास घुटे

ज्ञान भी घटे

 

१५३.

मर्म का तीर

मन को गया चीर

लुढ़का नीर

 

१५४.

जीते जी बोझ

मर के सहभोज

स्वयं को खोज

 

१५५.

पौछे अपने

आँसू को स्वयं ही

शिशु क्यों आज ।

 

१५६.

दिल ही सदा

कार्यरत रहता

आहत वही ।

 

१५७.

बेरोज़गारी

जनता परेशान

देश महान ।

 

१५८.

पोंछता आँसू

अपने सयंम आज

बेचारा शिशु ।

 

१५९.

अपंग गूँज

बिलखता बुढ़पा

पल सबल ।

 

१६०.

आँसू की झड़ी

मन तो हल्का करे

घुटती आत्मा ।


१६१.

तम के वश

ज्योति तिलमिलाती

न्याय है आज ।


१६२.

शब्द के तीर

तरकश से छूटे 

घुटन घुटे ।


१६३.

बुझ ही जाती 

सुलग के जिंदगी

रहती गूँज ।


१६४.

पाँव पसारे 

बेरोज़गारी-अन्याय

लोकतंत्र है ।


१६५.

तम ने ढकी 

उज्ज्वल चाँदनी

चक्षु बरसे ।


१६६.

बादल ढके

हँसती चांदनी को

ऑंखें बरसे ।


१६७.

तोडा ही जाता

महकता जो पुष्प

रीत जग की ।


१६८.

होड़ की दौड़

कुचल के भागता

स्वार्थ है आज ।


१६९. 

बेहरी भीड़

धर्म बिगुल बजा 

गूँगे वाचाल ।


१७०.

झूठ की लाठी

तम चलता रहा

सत्य गायब ।


१७१.

सवतंत्रता है 

नारी के कंदों पर

पग फिसले ।


१७२.

जन्म नियति

मृत्यु एक पड़ाव 

कर्म चयन ।


१७३.

हाथ काटें 

पाँव बोझ से दबे 

शरीर सहे ।


१७४.

यादों के पुल 

बाढ़ से ढ़ह जाये 

बादल छाए ।


१७५.

रिश्तों में गाँठ

खोलते हाथ कटे

नाखून चुभे ।


१७६.

बर्फ जीवन 

पीड़ा ने पिघलाया 

सार में मिला ।


१७७.

कर्म डोर से 

कठपुतली बंधे

नाच नचाये ।


१७८.

सत्य न दिखे 

मलिन दर्पण हो

भ्रम पनपे ।

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