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गीत : शिकायत
वह शख्स अब मुझको ढूँढ़ता तो है
एक बार ही सही अब पूँछता तो है
कितना मरें हैं, उन्हें पाने के लिए
उस शख्स को कोई बताता भी है?
हम इंतज़ार में लेटे हैं, गुलदस्ते के
फिर देर कर दी उसने आने में
हममें न कुछ भी पसन्द था उन्हें
जिंदगी बीत गई रूठने मानाने में ।
अब ख्याल रखने का क्या फायदा
यहाँ फर्क नहीं बाज़ू और बजरी में
निसबत-ए-खास है, मेरे मुजस्समें से
'नूरम' या नई शर्त है मुझे सताने में ।
गीत : जीना भूल गए
हाथ मिलन का बढ़ाया वैसे, बिछड़ा कोई मिल गया ऐसे
हम चाह के भी हिल न पाए, नज़रों ने रोक लिया हो जैसे ।
साँसों में साँस आ गई वैसे, बाँहों ने आपकी कस लिया ऐसे
हम चाह के भी छुड़ा न पाए, हमने चाहना छोड़ दिया जैसे ।
सासों में सासें घुल गई वैसे,आप होंठ करीब ले आये ऐसे,
हम चाह के भी मुड़ न पाए, हम मुड़ना भूल गए हो जैसे ।
एहसास वापस आ गया जिस्म में वैसे, हाथ फेरा आपने ऐसे,
हम चाह के भी मना न कर पाए, रोकना भूल गए हो जैसे ।
तंग कर कर के रात गुज़ार दी वैसे, 'नूरम' किसे नींद आये ऐसे?
करवट बदल के आप क्या गए, हम जीना ही भूल गए जैसे ।
Photo by Nick Karvounis on Unsplash
गीत : तुम्हारा प्यार चाहिए
सुनो मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए, आज चाहिए और अभी चाहिए
सोचने से फैसले कमज़ोर होते हैं, कमज़ोर फैसलों में जस्बात नहीं होते ।
हम तो उम्मीद का दामन लाये थे, हम मोहब्बत भीख में नहीं लेते
हाथों में समेट लेते तुम्हारी कमियाँ, गर तुम हमें बाँहों में समेट लेते ।
हर बात पे टोकते थे आप हमें, जब हम लौट रहे थे, आप रोक लेते
आज अलग होते नाज़ और नज़ारे, जो आप उस रोज़ इज़हार कर देते ।
निकाह के दस्तखत क्या माने रखते, जो दिल पे दस्तखत कर लेते
हमने तो आपको अपना था बनाना, काश आप ही पहल कर देते ।
पहले आप, पहले आप की कश्मकश, काश रिवायतें आप तोड़ देते
'नूरम' आपने भी हमें खूब बनाया, तकलीफ़-ए-तकल्लुफ़ सीख लेते ।
गीत : आज़माइश
अपने दिल का हाल क्या, बताये तुम्हें
अब वक़्त हो चला है, आज़माये तुम्हें ।
यह बात बताओ कितना है, प्यार हमसे
चलो वक़्त हो चला है, घर लेजाये तुम्हें ।
आज रात सर्द है और कोई, गरज़ नहीं
एक रत की तो बात है, कोई हर्ज नहीं ।
यह मेहमान नवाज़िश है, कोई क़र्ज़ नहीं
क्या तुम्हरा हमारी तरफ, कोई फ़र्ज़ नहीं ।
हम ही हम लुटते रहे, दिल के व्यापर में
तुम्हारे पास कारोबार का, कोई हिसाब नहीं ।
घाटे का सौदा रहा आप से, मोहब्बत 'नूरम'
जान भी ले ली और सुकून भी, दिया नहीं ।
गीत : इस्तिसना
कैसे कहें तेरे हम साथ हैं, कैसे कहें तुझसे हम दूर हैं
कैसे कहें तुझसे हाल-ए-दिल, कैसे कहें कितने मजबूर हैं ।
निदा ने तेरा अक्स बनाया, बादलों ने तेरा पता दिया
अज़्म-ए-सफ़र दिल का तेरे, कुछ धुंदला है, थोड़ा दूर है ।
ख्वाबों में न हम-साज़ हुए, हमहीं को खुदगर्ज़ बता दिया
ज़माना-ए-दराज़ से इंतज़ार (तेरा), वादों पे एतबार भी न किया ।
तुमसे मिलने की बद-नज़्मी, जिस्म एक तरफ रख दिया
क़ाबिल-ए-जवाज़ तसव्वुर (तेरा), हमने पुर-ज़ोर साबित किया ।
बे-नियाज़, जज़बात-से-आरी, किस बेदर्द से दिल लगा लिया
लुभाती है, इस्तिसना तेरी 'नूरम', इस कदर दीवना बना दिया ।
निदा* आकाशीय या स्वर्गीय ध्वनी
अज़्म-ए-सफ़र* यात्रा करने का इरादा
ज़माना-ए-दराज़* लम्बा समय
बद-नज़्मी* कुप्रबन्ध
क़ाबिल-ए-जवाज़* साबित करना
जज़बात-से-आरी* भावनाओं के बिना
इस्तिसना* विनियोजन, रद्द करना
गीत : मेरे महबूब
तू न तड़पे मोहब्बत में, तुझे करार मिले
मेरे महबूब सनम तूझे, उम्मीदों का प्यार मिले ।
तड़पना रातों में और तन्हाइयों में रोना
मेरे महबूब सनम तूझे, ना यह एहसास मिले ।
बेसुद भटकना रास्तों पे और लड़खड़ाके गिरना
मेरे महबूब सनम तूझे, न कभी ऐसे दिन दिखे ।
टूटे दिल से कर रहा हूँ यह दुआ तेरे लिए
मेरे महबूब सनम तूझे, मेरा ख़ुदा मेहफ़ूज़ रखे ।
मायूसी के आग़ोश में ज़ुल्मत-ख़ाना-ए-दिल हुए
मेरे महबूब सनम तुझे, 'नूरम' का दीदार मिले ।
गीत : खतावार तुम्हारे
आँसू भी न कह सके, बयां हम क्या करें
तसव्वुर में बैठे हैं तुम्हारे, हया हम क्या करें ।
आओ बैठो पास हमारे, गिला हम क्या करें
तस्वीरों से बातें तुम्हारे, इल्तिजा हम क्या करें ।
उस शाम का वोह जिक्र, भला हम क्या करें
ख्वाहिशों की तुम्हारे, नज़्में पढ़ा हम क्या करें ।
गुम - सुम थी वह सुबह, अंगड़ाई हम क्या करें
शरीक थे हम तुम्हारे, पहल हम क्या करें ।
खुदा से भी कहलवा दिया, शिकवा हम क्या करें
खतावार हैं हम तुम्हारे, ' नूरम ' हम क्या करें ।
गीत : ज़िक्र तुम्हारा
लम्हों में बाँध के हया, कम न करो,
थाम लो हाथ ज़रा, अहद-ए-करम करो ।
ख्वाहिशों की गलियोँ में, आग सी है,
चलो साथ मेरे ज़रा, हुस्न आबाद करो ।
यूँ ही गुज़रती है ज़िंदगी, गुज़र ही जायेगी
तुम यूँ नज़दीक से ज़रा, गुज़रा न करो ।
वादों का जिक्र हो तो, बुदबुदा देना तुम भी
तुम्हारे लिए यह बात ज़रा, से अल्फ़ाज़ ही है ।
रौशनी को आखिर, तुम्हारी ही जुस्तजू है
तुम सामने रहो ज़रा, हर जज़्बात 'नूरम' ही है ।
गीत : कसम आखिरी
मन बुनता रहे जाल, इक उलझन के तले,
हर बहाने का लिहाज़, होता आखिरी ।
चाहतों का फिसलना, इक मौके के लिए
हर बार का रूठना, होता आखिरी ।
दूर जाने का सोचना, इक पल के लिए
वजह न बन जाये, धड़कन की आखरी ।
होते है आशिक़, बदनाम किस लिए
कहीं बन न जाये, यह ख़बर आखरी ।
पहले लुभाना, फिर रौंदना किस लिए
तेरे सवाल का जवाब, सितम आखरी ।
रिश्ता आसुओं से, कर लिया किस लिए
' नूरम ' इबादत का तरीका है आखरी ।
गीत : उस रोज़
नज़रों से नज़रें क्या मिली, हम तो ईमान से गये,
मिलें कभी लबों से लब, जाने वह मंज़र, क्या होगा ?
होंगे साथ, शमो-सहर, वह आलम बेशक खास होगा,
कहीं गेसू कहीं अंचल, चेहरे पर लिखा, क्या होगा ?
आँखों में कईं अरमान, ज़ाहिर कोई ख्वाब होगा,
नकाब हटते ही, रश्के कमर का दीदार, क्या होगा ?
आरज़ू पर पहरा और मेरा प्यार बेदाग होगा,
इंतज़ार के मारों का, लेकिन हाल, क्या होगा ?
गर्म सासों की खुशबू, फरिश्तों को रश्क़ होगा,
वस्ल की रात, ' नूरम ' तेरा ख्याल, क्या होगा ?
गीत : वोह शफ़ीक़ (दोस्त)
वोह कौन है जो दिल पे, दस्तक दे रहा है
सबर, कहीं यह तुम तो नहीं ।
वोह कौन है जो मदहोशी में, चल रहा है
अबर* कहीं यह तुम तो नहीं ।
वोह कौन है जो खामोशी से, जल रहा है
वबर* कहीं यह तुम तो नहीं ।
वोह कौन है जो ज़ख्मों को, तराश रहा है
तबर* कहीं यह तुम तो नहीं ।
वोह कौन है जो अकड़ा हुआ, शर्मा रहा है
नबर* कहीं यह तुम तो नहीं ।
वोह कौन है जो चलती हवा से, बदल रहा है
ज़बर* कहीं यह तुम तो नहीं ।
वोह कौन है जो मेरी कब्र पे, रो रहा है
बेखबर, कहीं यह तुम तो नहीं ।
वोह कौन है जो सुबकते हुए, पुकार रहा है
' नूरम ' कहीं तुमने सुना तो नहीं ।
(अबर*बहुत नेक)
(वबर**बाल, ऊन)
(तबर***एक हथियार)
(नबर****उच्चतम, ऊॅंचा)
(ज़बर*****ऊपर, ऊँचा, भारी)
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