निखिलेश ' निखिल ' द्वारा रचित कवितायें

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मेरे द्वारा रचित कुछ हिंदी कविताएँ, छात्रों के लिए।


कविता : इधर - उधर


छाता उड़कर गया किधर,

आओ देखे इधर - उधर ।  

जा पहुँचा पड़ोसी के घर,

हाथ पकड़ कर लाओ इधर  ।  


कुर्सी उड़के गई किधर,

आओ देखे इधर - उधर ।  

जा पहुँची पड़ोसी के घर,

टाँग  पकड़ कर लाओ इधर ।  


नलका उड़कर गया किधर,

आओ देखे इधर - उधर ।  

जा पहुँचा पड़ोसी के घर,

मुंह पकड़ कर लाओ इधर ।  


चंदा मामा गए किधर,

आओ देखे इधर - उधर ।  

जा पहुँचा पड़ोसी के घर,

गाल पकड़ कर लाओ इधर ।  


बिल्ली मौसी गई किधर,

आओ देखे इधर – उधर ।  

जा पहुंची पड़ोसी के घर,

मूँछ पकड़ कर लाओ इधर ।  


नटखट 'नमन' गया किधर,

आओ देखे इधर - उधर ।  

जा पहुँचा पड़ोसी के घर,

कान पकड़ कर लाओ इधर ।



कविता : एक शिक्षक दिवस ऐसा भी


हमारे विद्यालय के अद्यापक 

कर रहे हमारा जीवन सार्थक। 

भर देते हममें विश्वास

अनमोल-अतुल्य है इनका प्रयास।  


गणित से अब हम न घबराये 

इस तरह 'आशुतोष' सर हमें पढाये।  

वैदिक गणित की मदद से

झटपट सरे प्रश्न हल कर पाए।   


हिंदी सी मीठी जिसकी बोली 

नाम है इनका 'नूरिमा' सलोनी।  

नंबर देने में करती कंजूसी

पर दिल की है बहुत ही भोली। 


ई.वी.स सरल ढंग से समझाये

'नाज़' मैडम के पास हैं सब उपाए। 

विज्ञान के गूढ़ तथ्य हमें सिखाये  

वैज्ञानिक दृष्टिकोण हममें जगाये। 


अंग्रेज़ी की गिटर पिटर

उसपे 'किंजल'  मैडम का डर। 

कुछ वर्ड्स में सब कह जाती

और हम सब देखते रह जाते। 


नित्य नयी तकनीक से अवगत कराते

कंप्यूटर के 'प्रधान' सर छात्रों को बहुत भाते। 

हार्डवेयर- सॉफ्टवेयर- ऑपरेटिंग सिस्टम

कुछ याद रहता कुछ भूल जाते। 


सात सुरों से इन्द्रधनुष बना देते

'दिलजीत' सर ऐसे संगीत सिखाते। 

हम भी ताल देते और इतराते 

सोचते, हम भी संगीतकार बन पाते। 


लॉक डाउन में भी मनाया 'शिक्षक दिवस'

हमारे प्रचार्य जी का है प्रयास अथक।  

बहुत हुई अब ऑनलाइन पढ़ाई 

हे भगवन ! दुहाई-दुहाई।



कविता : कचरा प्रबंधन


नन्हे हाथ, अब न कचरा भीनें 

आओ कचरा प्रबंधन हम सीखें।


सब्ज़ी छिलका फल वगैरह

गड्ढे मैं डालें और खाद बनालें।


प्लास्टिक टूटा, लोहा भंगार

कबाड़ी को दें और धन कमालें। 


कॉपी मैगज़ीन, पुरानी अख़बार 

लिफाफे बना लें और उघोग चलालें। 


अब भी जो कुछ बच जायेतो

कचरा पेटी में दान करें और पुण्य कमालें।


स्वच्छता नहीं बस, ज़िम्मेदारी सरकारी

जनता की भी है इसमें, साझेदारी। 


यहाँ वहाँ जो हम, कचरा फैलाएं 

कीटाणुवों को दें दावत और हम बिमारियां पायें।


याद आ रही गाँधी जी की बात निराली 

उन्होंने थी रद्दी कागज़ से, पेपर पिन निकाली। 


स्वच्छ देश का सपना होगा, तब साकार

जब होगें हम कचरा प्रबंधन को तैयार।



कविता : हमारा गौरव


अपनी भाषा अपना मान

तिरंगे की हिंदी है, शान

सरगम की इसमें, सुरीली तान

सुनो सुनो हे - हिन्दोस्तान ।


कितने रूप, इसने बदले

कितने मोढ़ है, पार किये

वेदों का घुला, इसमें ज्ञान

सुनो सुनो हे - हिंदुस्तान ।


मन के मनकों को, यह जोड़े

भावो में यह, आत्मा घोले

एकता का यह है, वरदान

सुनो सुनो हे - हिंदुस्तान ।


गौरव से भरा, इसका इतिहास

संस्कृत की, सुता यह ख़ास

अतीतमयी, यह है खदान

सुनो सुनो हे - हिन्दोस्तान ।


मातृभूमि की है यह जननी

लक्ष्मी वाहिनी और भवानी

माँ भारती का यह सम्मान

सुनो सुनो हे - हिन्दोस्तान ।



कविता : वृक्ष देवाय नमः


आओ मिलकर पेड़ लगाए

हरियाली सब और फैलाएँ।


पेड़ हरा सोना कहलाते 

वायु को यह स्वच्छ बनाते

पेड़ ही जीवन का आधार 

बिना पेड़ ना होगा संसार


मिलकर हम सब पेड़ लगाएं 

खट्टे मीठे फल भी खाएं

धरती मां का है यह श्रृंगार 

सजके करें माँ से प्यार


आओ मिलकर पेड़ लगाए

हरियाली सब और फैलाएँ।



कविता : कक्षा पाँच


कक्षा पाँच का मैं बच्चा,

रोज़ पढ़ाई हूँ मैं करता ।


गणित मुझे नहीं आता, 

विज्ञान से हूँ जी चुराता ।


हिंदी की बात निराली,

कहानियों की यह नानी ।


अंग्रेज़ी दिलाती हमें सम्मान, 

कंप्यूटर बढ़ाता हमारा ज्ञान ।


माँ-बाप का रखो ध्यान,

बनो उनकी पहचान ।

ध्येय अपना रखें सुजान,

बनेगा अपना देश महान ।



कविता : विषयों पर चर्चा


कक्षा छः का अब में अध्येता 

ऑनलाइन पढ़ाई हूँ मैं करता।

पर गणित मुझे नहीं है भाता 

और विज्ञान से जी चुराता।

हिंदी की है बात निराली

कहानियों की है यह पिटारी। 

अंग्रेजी दिलाती हमें सम्मान

सामाजिक अध्ययन,सामान्य ज्ञान।

बीते कल की कलियाँ खोलता

इतिहास कभी जूठ नहीं बोलता। 

कंप्यूटर देता तकनीकी ज्ञान

नए ज़माने का यह फरमान।

ऑनलाइन से थे वारे-न्यारे 

सुखमय बीते इम्तिहान सारे। 

बच्चों की आई वैक्सिनेशन की बारी

'निखिल' खुल गए स्कूल कर लो तैयारी।



कविता : स्कूल का पहला दिन


मैं पहली कक्षा में आ गया,

आज पहला दिन है।

नई कमीज नहीं हाफ पेंट,

यह कक्षा तो  भिन्न है।


मैं पढ़ूँगा और लिखूँगा, 

मैं बनूँगा होनहार।

मैं खेलूँगा और कूदूँगा,

मैं बनूँगा होशियार।  


मैं अध्यापक  का कहना मानूँगा,

और पाऊँगा उनका दुलार।

अनुशासन में, मैं रहूँगा,

तभी मैं कुछ सीख पाऊँगा।


कक्षा में पढ़ते, हम चुप रहकर,

मध्यांतर में रहते मिल-जुल कर।

खेल के मैदान में, हम रम जाते

कभी गेंद पकड़ते,कभी छोड़ आते।


जब-जब निहारते, खिड़की से बाहर,

तब-तब गदगद, हम हो जाते।

सबसे अच्छी मुझको लगती,

टन-टन-टन छुट्टी की घंटी।


सबसे अच्छी मुझको लगती,

टन-टन-टन छुट्टी की घंटी।

सबसे अच्छी हमको लगती,

टन-टन-टन छुट्टी की घंटी।



कविता : योग प्रार्थना


हे योगेश्वर दो वरदान 

करें योग का हम सम्मान।  


आसन ध्यान और प्राणायाम  

जीवन के बने आयाम 

करें स्व से हम पहचान

हे योगेश्वर दो वरदान।  


तन में हो बल,मन में शक्ति 

सत्य का मार्ग हो नहीं कोई युक्ति

कर पाये विश्व का कल्याण 

हे योगेश्वर दो वरदान।  


सजल भावों का हो संचार  

आत्मा करें आपका दीदार 

आनन्द से भर जाये प्राण  

हे योगेश्वर दो वरदान।  


हे योगेश्वर दो वरदान

करें योग का हम सम्मान।



कविता : एकता


बूँदों के मिलन से 

बन गया सागर, 

अनमोल मोती जन्में 

तब इसके भीतर।


रंगों के एकजुट से 

इंद्रधनुष खिला,

नयन दुलारा बना 

गगन पर चमका।


गेंदा,गुलाब,जूही 

उपवन महकाये, 

न्यारी शोभा देखके 

हर नयन हर्षाये।


अनहोनी हार गई

जुड़े हाथों से,

भारत महान बना

एकता के धागों से।


 कविता - १५ अगस्त 


आज से कईं साल पहले,

हुआ था बरतानिया का सूरज अस्त;

मुबारक हो आज का दिन हम सबको,

आज है - १५ अगस्त ।


लहू से सींचा हर किसी ने,

जिस्मे जितना भी था,

फिर दे दी जान, दुश्मन की गोली थी,

और उनका सीना था ।  


कांप गए थे दिल,

दुश्मनों के, उस दिन,   

जब एक आवाज में, देश का,

‘ जय हिन्द ’ कहना था ।


उस दिन जो दुश्मन भागा है,

वह फिर से कहीं लौट न आये;

आज फिर एक बार हमको,

वह वादा दोहराना है । 



 कविता - राष्ट्र-भाषा 


हर देश को भाषा अपनी है,

हर कार्य उसी से चलता है;

पर भारत की लीला न्यारी,

अंग्रेज़ी यहाँ लोगोँ को प्यारी ।


लोगोँ है अंग्रेज़ी विदेशी,

भारत माँ की शोभा हिंदी;

इसमें छुपी है, एकता हमारी,

गुणोँ की यह खान है सारी ।


राष्ट्र सुलभ यह अपनी भाषा,

इससे उन्नति की है आशा;

इसे न दे दो तुम निराशा,

हिंदी भारत की परिभाषा ।


संसार इसे बिखरा न सका,

इतिहास प्रभुता घटा न सका;

भारत इसके गुण जान न सका,

इसकी महानता पहचान न सका ।


कितनी मनोहर कितनी सुन्दर,

भाषा हो रही उपेक्षित है,

इसका परिमार्जन, नवीनकरण,

निश्चय ही आज अपेक्षित है ।


यह भाषा हमारी अपनी है,

इसकी रक्षा हमने करनी है;

आज हम सब को मिल कर,

शपत यह ग्रहण करनी है ।



 कविता - वन्दे मातरम् 


कोई धरती-माँ कहे इसे,

कोई कहे इसे लक्ष्मी;

भेद भाव रहित सबको देती,

स्वार्थहीन है यह दाती ।   


इस धरती के पत्त्थर भी,

लगते है हीरे जवाहर जैसे,

इसपे नाचते कूदते झरने,

वह तो है अमृत नीर जैसे ।


इस धरती को चूम चूम कर,

हम फूले नहीं समाते है;

इसके अंचल की छाँव तले,

हम नव-जीवन पा जाते है ।


हो सके बलिदान देश पर,

रहती सबकी यह अभिलाषा;

प्राण पखेरू हो जब आतुर,

मुँख पे हो बस नाम देश का ।


खून से सींचा है इसको,

सब ने मिल कर कई बार;

कभी इसे झुकने न देंगे,

कण कण की यही पुकार ।


शानो शौकत वाला ताज,

लज्जित हो रहा आज;

जल रहे चिनार मशाल बन कर,

कह रहे देश को बचा लो आज ।

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